मेरी कामुकता कहानी हिंदी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपनी चढ़ती जवानी अपनी मौसी के देवर के हवाले कर दी. उसे देखते ही मुझे लगा कि बस यही है जो मेरी वासना को पार लगाएगा.
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अनामिका है और अंतर्वासना पर यह मेरी पहली कामुकता कहानी हिंदी में है.
मैं 20 वर्षीय युवती हूं. रंग साफ, कंटीले नैन नक्श की मालकिन हूं, कद पांच फीट, फिगर 32-28-34 है। कद मेरा छोटा है परंतु मेरे खूबसूरत चेहरे और गदराए जिस्म के आगे कोई मर्द मेरा कद नहीं देखता।
तो मैं आपको बताना चाहूंगी उस रात के बारे में … मेरी कामुकता कहानी के बारे में जब पहली बार किसी मर्द ने मेरे जिस्म को छुआ था।
बात है आज से दो वर्ष पूर्व की जब मैं अठारह वर्ष से कुछ महीने ऊपर की हो चुकी थी. मैं गोरखपुर अपनी मौसी के घर गई थी.
मेरी मौसी का विवाह एक धनी परिवार में हुआ है. वहां उनके पास ऐशो आराम की कोई कमी नहीं है।
मौसी के घर में उनके पति के अलावा उनका एक देवर अमित भी रहता है।
मैं रात भर के थकान भरे सफर के बाद गोरखपुर स्टेशन पर पहुंची.
मेरे मौसा मुझे लेने आए थे, उनके साथ कुछ मिनट में ही मैं मौसी के घर पहुंच गयी।
मौसी मुझे देख बहुत खुश थीं और मेरे स्वागत में उन्होंने तमाम पकवान बना रखे थे। मैं बहुत खुश हुई मौसी के प्यार भरे सत्कार से!
खा पीकर मैं गहरी नींद में सो गई.
आंख खुली तो शाम चढ़ चुकी थी। मैं चाय वाय पी कर बाग में टहलने लगी। मेरी मौसी के बंगले से सटे ही एक आम का छोटा सा बगीचा है।
मैंने देखा बाग में एक कोने में एक लड़का, जिसका कद कुछ 6 फीट, रंग जैसे शहद और दूध का मिश्रण, और अच्छे गठीले देह का, फोन पर किसी से बातें करता हुआ टहल रहा था। मैंने उसे एक नजर देखा और मैं समझ गई यह मौसी के देवर महोदय हैं।
यूं तो आज तक मैंने किसी लड़के का हाथ भी नहीं पकड़ा था क्यूंकि मैं हमेशा अपनी पढ़ाई लिखाई में ही व्यस्त रही, और इन सब चक्करों में फंसने का कभी वक़्त ही नहीं मिला, हां परंतु मैंने मर्दों से मिलने वाले अटेंशन को बहुत इंज्वाय किया है.
जब मर्द मेरी उभरी हुई चूचियों को लालच भरी निगाहों से देखते हैं, तो मेरा रोम रोम प्रफुल्लित हो उठता है।
खैर आती हूं वापस कहानी पर!
मैंने उसे देखा, और अचानक से मेरे हृदय में काम की ज्वाला जग गई. मेरी आंखों में कल्पनाओं का सागर उमड़ने लगा. लगा बस अब मेरी जवानी की नैया का खिवैया मिल चुका।
अब मैं इस ताक में थी कि कब वह मुझे देखे।
मैंने एक तरकीब सोची।
उस वक्त मैंने एक रेड टॉप और ब्लैक स्कर्ट पहनी थी।
मैंने पेड़ के आड़ में जाकर अपनी पैंटी निकाल दी और उसे पेड़ के कोटर में छुपा दिया।
जैसे ही हवा का एक झोंका मेरे स्कर्ट के अंदर मेरी चूत को छूकर निकला मेरे शरीर में झुरझुरी छूट गई।
मैंने आसपास देखा तो उस वक्त बाग में मेरे और उसके अलावा कोई नहीं था। मैं सरपट बेधड़क पेड़ पर चढ़ती गई। पेड़ की बनावट कुछ ऐसी थी कि चढ़ाई आसान थी. मेरी कोमल देह से कभी पत्तियां टकराती, तो कभी कुछ छोटी टहनियों मेरी मांसल जांघों को छेड़ देती.
और नीचे से मेरी चूत का नंगा होना मुझे रोमांचित कर दे रहा था. मैं सोच रही थी कि मुझे ब्रा भी निकाल के आनी चाहिए थी।
मैं जाकर एक लंबे मोटी डाल पर बैठ गयी.
अब वक़्त आ गया था अपनी चाल चलने का।
मैं ज़ोर जोर से चीखने लगी- अरे कोई है, मुझे नीचे उतारो, मैं यहां फंस गई हूं, कोई तो आओ मुझे उतार दो।
दो सेकंड में अमित भागता हुआ आया।
उसने मुझे देखा और पूछा- तुम ऊपर क्या कर रही हो?
मैंने बोला- मैं तो आम तोड़ने आई थी. चढ़ तो गई पर उतर नहीं पा रही। प्लीज उतार दो ना।
और मैं रोने का नाटक करने लगी।
अमित ने दो मिनट रूकने को बोला और लोहे की एक सीढ़ी लेकर आया. जिस टहनी पर मैं बैठी थी, उसने उस पर सीढ़ी को टिका दिया.
मैं बोली- मुझे सीढ़ी उतरनी नहीं आती. तुम एक बार चढ़ के फिर उतर के बता दो।
अमित के चेहरे पर थोड़ी झुंझलाने जैसे भाव आए फिर न जाने क्यूं वह मुस्कुरा कर सीढ़ी चढ़ गया।
जैसे ही वह ऊपर आया और फिर नीचे उतरने को हुआ मैं बोली- तुम उतरो और तुम्हारे बाद मैं उतरती हूं।
उसने बोला- एक वक्त पर दो लोग?
तो मैंने कहा- देखते नहीं, लोहे की सीढ़ी है. दो लोग का भार झेल लेगी।
मैंने तो बस बहाना किया था कि नीचे उतरते वक़्त वो मेरी नंगी चूत के दर्शन कर सके।
अब खेल शुरू हुआ।
वो सीढ़ी उतर रहा था और मैं उसके ऊपर अपनी गदराई गांड को जान बूझकर मटका कर उतर रही थी.
हवा मेरा साथ दे रही थी, मेरी स्कर्ट उड़ उड़ जा रही थी।
मैं इतना तो जान रही थी कि अमित मेरी चूत को निहार रहा है और मेरी गोलाकार गांड को भी।
जैसे ही एक दो सीढ़ी बची, मैंने जान बूझकर पकड़ ढीली की और उसके ऊपर गिर गई।
मैं जैसे ही गिरी उसकी मजबूत हाथों ने मुझे कमर से थाम लिया।
हाय रे बदकिस्मती … मैं तो चाहती थी वो मुझे मेरी चूचियों से थामे।
मैं पलटी और जोर से अमित को अपनी बांहों में जकड़ लिया। मेरे कठोर हो चुके निप्पल उसके सीने में दब गए।
अमित अब तक पिघल चुका था. मैं अपनी नंगी गांड पर उसके खड़े लंड को महसूस कर सकती थी।
मैं झट से खड़ी हो गई और उसे धन्यवाद बोल कर दौड़ती हुई बंगले की तरफ भागी.
अपने कमरे में जाकर मैं अपनी चूत के दाने को रगड़ रगड़ खूब पानी पानी हुई।
अब बस मुझे उसका लंड चाहिए था। मैं अब उसकी पहल का इंतजार कर रही थी।
मौसी खाना फ्रिज में रख कर गई थीं। मैं किचन में गई तो देखा अमित अपने हिस्से का खाना निकाल चुका है।
मैं खाना लेकर जैसे ही डाइनिंग टेबल पर आई तो देखा कि अमित वहां बैठा हुआ है. खाना वो खा चुका था और अब उठने ही वाला था.
मुझे देख वह दुबारा बैठ गया।
मैं शर्माने का नाटक करने लगी।
अमित ने बोला- एक बात कहूं, तुम शायद बगीचे में अपना कुछ भूल गई थी.
और उसने मेरे सामने मेरी पैंटी हवा में लहराई.
मैंने तुरंत उसे उसके हाथों से झटकना चाहा तो अमित ने मेरे हाथों को दबोच लिया और बोला- मैं जानता हूं तू मुझसे चुदना चाहती है. मुझे अपनी चूत और गांड तूने जानबूझ कर दिखाया था।
मैं कुछ कह पाती इससे पहले ही अमित ने मेरी पैंटी को मेरे मुंह में ठूंस दिया।
मेरे मुंह मैं कोई नमकीन सा स्वाद घुल गया।
अमित ने मेरी पैंटी पर अपनी मूठ मारी थी, मैं समझ गई।
अब अमित ने मेरे गोल गालों को दबोचा। तो मैंने खांसते हुए पैंटी को मुंह से गिरा दिया।
अमित एकटक मेरी नशीली आंखों को तो कभी मेरे रसभरे होंठों को देखता रहा।
उसने धीरे से मेरे निचले होंठ को चूस लिया। मेरे शरीर में तरंगें प्रवाहित होने लगी। मैं भी उसके होंठों को चूसने लगी। मैं कभी उसके होंठ चूसती तो कभी उसकी लंबी जीभ को अपने होंठों से पकड़ कर ज़ोर से चूसती.
अमित अपनी जीभ मेरे मुंह में घुमाता। अमित ने मेरे चूचियों को दबोच लिया और हल्के हाथों से उन्हें मसलने लगा।
अब मैं नशे में डूबी अधखुली आंखों से मजा लेने लगी।
अमित ने टॉप के ऊपर से ही मेरे निप्पल को अपने नाखून से रगड़ा। मैं तिलमिला उठी और अपनी जांघों से उसे कमर से दबोच लिया.
यह सारा कांड हम लोग डाइनिंग टेबल पर कर रहे थे।
उसने मेरे टॉप को निकाला और मेरी ब्रा को निकाल मेरी चूचियों को जोर से मसलने लगा। मेरी गोरी सुडौल चूचियां उसके हाथों के दबाव से लाल हो गई थी। मेरे भूरे निप्पल को वो किसी छोटे बच्चे की तरह चूस रहा था और हाय … मेरी जान निकली जा रही थी।
मुझसे रहा न गया और मैंने उसके मुंह से अपना दूध छुड़ा उसके मलाईदार कुल्फी पर झपट पड़ी।
जैसे ही मैंने उसका शॉर्ट्स सरकाया, उसका सात इंच का मोटा सा लंड उछल कर खड़ा हो गया।
मैंने एक नज़र अमित से मिलाई और फिर उसके लंड की चमड़ी को हल्का सा पीछे सरकार उसके गुलाबी रंगत लिए टोपे को अपने मखमली होंठों से एक चुंबन दिया. और अपनी जीभ को नुकीला बना मैंने उस टोपे को सहलाने शुरु किया.
और कुछ देर ऐसा करने के बाद मैंने अमित की आंखों में देखा और गपाक से पूरा लंड अपने मुंह में भर लिया।
मुझे अंदाज़ नहीं था कि यह मेरे गले तक चला जाएगा। मेरी आंखों में आंसुओं आ गए।
मैंने हल्का सा लंड बाहर निकाल के अपने होंठों को भींच लिया और जोर जोर से चूसने लगी।
अभी मैं और चूसना चाह रही थी पर अमित ने मुझे गोद में उठा लिया।
मैं उसकी गोद में छोटी सी लग रही थी। आखिर एक फुट का अंतर जो था।
अमित ने खड़े खड़े ही मुझे गोद में ही टांगों को फैलाया और मेरी चूत के मुहाने पर लंड रखा। और एक ही धक्के में सटाक से जड़ तक लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
ऐसा लगा मुझे जैसे कि किसी ने मेरी चूत ही फाड़ दी।
मैं चीख उठी और दर्द से तड़प उठी।
अमित बेरहम जल्लाद की तरह नीचे से मुझे घपाघप चोर रहा था। मेरी कसी हुई अनचुदी चूत को उसने आज भरपूर चोदने का सोच रखा था। उसका मोटा लंड अंदर बाहर जाता रहा और मेरी चूत का दर्द अब मीठे दर्द में बदल गया था।
अमित थक चुका था. उसने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया तो उसकी नज़र मेरी और उसकी जांघ पर लगे खून पर गई।
तो उसने बोला- अरे, तेरी सील टूटी नहीं थी क्या अभी? मैं तो तुझे सौ लौड़ों से चुदी हुई रंडी समझ चोद रहा था. तूने बताया क्यूं नहीं? मैं तुझे आराम से चोदता।
मैं कुछ बोली नहीं और अपनी जांघें फैला दी।
अमित ने अपने लंड का टोपा मेरे चूत के दाने पर रगड़ा और मैंने कसमसा कर जबरन उसका लंड पकड़ चूत में घुसाने लगी। तो उसने खुद ब खुद अपना लंड अंदर डाल दिया और मेरे दूध को दबाते हुए चोदने लगा।
उसका गर्म मोटा लंड मेरी चूत की गद्दीदार कसी दीवार को रगड़ता हुआ मुझे पेलता रहा।
15 मिनट की चुदाई के बाद उसने अपनी मलाई से मेरी चूत को भर दिया। हम दोनों निढाल पड़े वहीं सो गए.
मौसी के घर मैं एक महीना रही और इस दौरान अमित ने मुझे कई बार चोदा।
तो दोस्तो, कुछ इस तरह हुई मेरी पहली चुदाई।
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